KALI CHALISA PDF / माँ काली चालीसा
सिद्ध काली चालीसा
|| हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||
|| हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ||
ॐ
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
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जय गणेश जय शारदे। जय महेश जय मेश। जय समीर सुत जय सदा स्वतन्त्र भारत देश ॥
परम भक्त बजरंग के माँ काली के भक्त। माँ तारा के भजन से भयउ सिद्धकवि ‘मत्त’ ॥
जय जय सीता राम के मध्य वासिनी अम्ब। देहु दर्श जगदम्ब अब करो न मातु बिलम्ब ॥
जय तारा जय कालिके, जय दस विद्या वृन्द । काली चालीसा रचत एक ‘सिद्धकवि’ हिन्द ॥
प्रातः काल उठ जो पढ़े दुपहरिया या शाम। दुःख दरिद्रता दूर हो सिद्ध होय सब काम ॥
॥ सिद्ध काली चालीसा ॥
जय काली कंकाल मालिनी। जय मङ्गला महाकपालिनी ॥ रक्तबीज वध कारिणि माता॥
सदा भक्तन के सुखदाता ॥ शिरो मालिका भूषित अंगे। जय काली मधु मध्य मतंगे ॥
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हर हृदयारविंद सुबिलासिनी। जय जगदम्ब सकल दुखनाशिनी ॥
ह्रीं काली श्रीं महाकराली। क्रीं कल्याणी दक्षिण काली ॥
जय कलावती जय विद्यावती । जय तारा सुन्दरी महामती ॥
देहु सुबुद्धि हरहु सब संकट । होहु भक्त के आगे परगट ॥
जय ओंकारे जय ह्व कारे। महाशक्ति जय अपरम्पारे ॥
कमला कलियुगदर्पविनाशिनी। सदा भक्तजन के भयनाशिनी ॥
अब जगदम्ब न देर लगावहु । दुख दरिद्रता मोर हटावहु ॥
॥ सिद्ध काली चालीसा ॥
जयति कराल काल के माता। कालानल समान द्युति गाता ॥
जय शंकरी सुरेशि सनातनि। कोटि सिद्धिकवि मातु पुरातनि ॥
कपर्दिनीकलिकल्मषमोचन। जय विकसित नव नलिन विलोचनि ।।
आनन्दा आनन्द निधाना। देहुमातु मोहिं निर्मल ज्ञाना ॥
करुणामृत सागर कृपामयी । होहु दुष्टजन पर अब निर्दयी ॥
सकल जीव तोहिं समान प्यारा। सकल विश्व तोरे आहारा ।।
प्रलयकाल में नर्त्तनकारिणि । जगजननि सब जगके पालिनि ।।
महोदरी माहेश्वरि माया। हिमगिरि सुता विश्व की छाया ॥
स्वच्छच्छरद मराद् धुनिमाहीं। गर्जत तूहिं और कोउ नाहीं ॥
स्फुरित मणि गणाकार प्रताने । तारागण तू व्योम विताने ॥
॥ सिद्ध कानी चालीसा ॥
श्रीराधा संतन हितकारिणी । अग्निनपनिअतिदुष्ट विदारिणि ॥
धूम्रविलोचन प्राणविमोचनि। शुम्भ निशुम्भ मथनि बरलोचनि ॥
सहस्त्रभुजी सरोरुह मालिनि। चामुण्डे मरघट के वासिनि ॥
खप्परमध्य सुशोणित साजी। मारेउ माँ महिषासुर पाजी ॥
अम्ब अम्बिका चण्ड चण्डिका। सब एके तुम आदिकालिका ॥
अजा एक रूपा बहु रूपा। अकथ चरित्रा शक्ति अनूपा ॥
कलकत्ते के दक्षिण द्वारे। मूरति तोर महेश अपारे ॥
कादम्बरी पानरत श्यामा। जय मातङ्गि काम के धामा ॥
कमलासनवासनि कमलायनि । जयश्याम जय जय श्यामायनि ।।
रासरते नवरसे प्रकृति हे। जयति भक्त उर कुमति सुमतिहे ॥
॥ सिन्द ककनाली चालीसा ॥
कोटिब्रह्म-शिव विष्णु कर्मदा। जयति अहिसा धर्म जन्मदा ॥
जलथल नभमंडल में व्यापिनी। सौदामिनी मध्यअलापिनी ॥
झननन तच्छुमरिन रिननादिनि । जय सरस्वती वीणावादनि ॥
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ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै । कलित गले कोमल रुण्डायै ॥
जय ब्रह्माण्ड सिद्धकवि माता । कामाख्या औ कालीमाता ॥
हिङ्गलाज विन्ध्याचल वासिनि । अट्टहासिनि अघनाशिनि ।॥
कितनी स्तुति करो अखण्डे । तू ब्रह्मांड शक्ति जितखण्डे ॥
यह चालीसा जो तव गावे । मातु भक्त वांछित फल पावे ॥
केला और फल फूल चढ़ावे । मांस खून नहीं छुवावे ॥
सबके तुम समान महतारी। काहे कोई बकरा को मारी ॥
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॥ दोहा ॥
सब जीवों के जीव में, व्यापक तू ही अम्ब। कहत सिद्ध कवि सब जगत, तोरे सुत जगदमब ॥
विक्रम सम्वत् उन्नीस सौ, ब्यासी में मम जन्म। चूहा वाली पुत्र हूं, स्थान गयापुर धर्म ॥
|| बोलो अम्बे माँ की जय ||
|| बोलो साजे दरबार की जय ||
|| हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||
|| हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ||
|| हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||
|| हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ||
|| हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||
|| हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ||
|| हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||
|| हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ||
|| हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ||
|| हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ||
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|| हर हर हर हर महादेव शिव शम्भो शंकर ||
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